Jagannath Puri Rath Yatra kya haiJagannath Puri Rath Yatra kya hai

Jagannath Puri Rath Yatra: ओडिशा राज्य का जगन्नाथ पुरी धाम भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। जगन्नाथ पुरी धाम में हर साल लाखों-करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु देश विदेश से भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आते हैं। ये मान्यता है कि जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के विशाल रथ को खींचने से भक्तों भगवान जगन्नाथ का आशीर्बाद प्राप्त होता है।

अब हर श्रद्धालु के मन में ये सवाल रहता है की जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा क्या है ? जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास क्या है जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कितनी पवित्र है? और ये कब सुरु होती है ? तो इन सभी प्रश्नो का जबाब आज आपको यहाँ मिलेगा।

 

क्या है जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा?

Jagannath Puri Rath Yatra kya hai?

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा निकलने के पीछे का पौराणिक मत यह है कि स्नान पूर्णिमा जिसे ज्येष्ठ पूर्णिमा भी कहते है के दिन सम्पूर्ण जगत के नाथ भगवान श्री जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। अपने जन्म दिवश पर प्रभु जगन्नाथ को बड़े उनके भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा के साथ रत्न जड़ित सिंहासन से उतार कर मंदिर में बने स्नानगृह में ले जाया जाता है जहा उनका 108 कलशों से शाही स्नान होता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस 08 कलशों के शाही स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं और उन्हें ज्वर आ जाता है। जिसके उपरांत प्रभु जगन्नाथ को 15 दिन तक एक विशेष कक्ष में रखा जाता है जिसे ओसर घर कहते हैं। इस दौरान महाप्रभु जगन्नाथ को वैद्यों और मंदिर के प्रमुख सेवकों के अलावा और कोई भी नहीं देख सकता है।

15 दिन बीत जाने के बाद जब भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होकर अपने कक्ष से बाहर निकलकर अपने भक्तो दर्शन देते हैं। इस घटना को नव यौवन नैत्र उत्सव कहा जाता है। और इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु जगन्नाथ श्री कृष्ण अपने बडे भाई बलराम जी तथा अपनी बहन सुभद्रा जी के साथ मंदिर से बाहर आते हैं और अपने रथ पर बैठकर नगर दर्शन के लिए निकलते हैं।

 

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कब निकली जाती है?

Jagannath Puri Rath Yatra kab nikali jati hai?

हिन्दू पंचांग के अनुसार जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को निकाले जाने का विधान है। यह पावन यात्रा इस साल 12 जुलाई 2021 से आरंभ होगी और इसका समापन पूरे विधि-विधान से 20 जुलाई 2021 दिन मंगलवार को देवशयनी एकादशी के पर्व के किया जाएगा। इस रथयात्रा में पारम्परिक सद्भाव, सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सहिष्णुता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा कहा से कहा तक जाती है?

Jagannath Puri Rath Yatra पुरी शहर के जगन्नाथ धाम से निकल कर 3 किलोमीटर दूर एक जगह गुण्डीचा बारी जाते हैं और वहां भगवान जगन्नाथ सात दिन विश्राम करते है। गुण्डीचा बारी में 7 दिनों के विश्राम के बाद एकादशी की तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने घर वापस लौट आते है।

रथ यात्रा के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति!

पुरानी मान्यताओं और पौराणिक कथाओ के अनुसार जो भी भक्त श्रद्धाभाव से जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में भाग लेता है और रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञों के पुण्य के समान फल की प्राप्ति होती है और वह अपने सभी पाप कर्मो से मुक्त हो जाता है। जो भी भक्त इस रथ यात्रा के दर्शन करते है वे सभी अपने पापों से मुक्त हो जाते है और उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कितने दिनों तक चलती है जगन्नाथ रथ यात्रा ?

भगवान जगन्नाथ की ये रथ यात्रा लगभग दस दिनों तक चलती है जिसमें पहले दिन भगवान जगन्नाथ को गुण्डीचा बारी में गुंडिचा माता के मंदिर लेकर जाया जाता हैजहा वे 7 दिनों तक विश्राम करते है।

 

जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा के रोचक तथ्य

Jagannath Puri Rath Yatra rochak tathya
Jagannath Puri Rath Yatra rochak tathya

Interesting facts about Jagannath Puri Rath Yatra

पौराणिक मान्यताओं(पद्म पुराण) के अनुसार अनुसार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से प्रांरभ होती है और रथ यात्रा का समापन देवशयनी एकादशी के दिन होता है।

• Jagannath Puri Rath Yatra में सबसे आगे भगवान बलराम का रहता है जिसे ताल ध्वजा कहते है इसके बाद बहन देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन और सबसे पीछे भगवान श्री जगन्नाथ का गरूड़ध्वज रथ चलता है।

• मान्यताओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ प्रत्येक वर्ष गुण्डीचा अपनी मौसी के घर जाते हैं और यहां सात दिनों तक रहते है।

• रथ का के निर्माण में दारू नाम की विशेष लकड़ी का प्रयोग होता है और इस लकड़ी का चयन वसंत पंचमी के दिन से करना शुरू किया जाता है।

• भगवान जगन्नाथ के रथ का निर्माण अक्षय तृतिया के दिन से सुरु होता है।

• रथ के निर्माण में किसी प्रकार के लोहे की कील और धार दार वस्तु का प्रयोग नहीं होता है और इसको खीचंने के लिए रस्सी का प्रयोग किया जाता है।

• भगवान श्री जगन्नाथ के में रथ 16 पहियों लगे होते हैं और इसकी ऊचांई 45 फीट होती है।

• भगवान श्री जगन्नाथ के रथ के ऊपर हनुमान जी और नरसिंह भगवान के चिन्ह बने रहते हैं।

• इस रथ से ब्जग्वान जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ धाम से निकल कर 3 किलो मीटर दूर गुण्डीचा बारी तक जातें है और फिर एकादशी की तिथि पर वापस घर लौटते हैं।

• मान्यता के अनुसार जो भी भक्त श्रद्धाभाव से भगवान के रथ को खीचंता है उसे सौ यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है।

 

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