President Ramnath Kovind in AyodhyaPresident Ramnath Kovind in Ayodhya

President Ramnath Kovind in Ayodhya: आज हमारे देश के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या में थे। वह उन्होंने योगी सरकार द्वारा आयोजित रामायण कॉन्क्लेव का उदघाटन किया। इस दौरान उनके भाषण में भगवान राम के प्रति आस्था साफ़ झलक रही थी। इस बार अयोध्या में राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी का भाषण मनो कोई प्रवचन लग रहा था। और लोग मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे।

राम की नगरी अयोध्या में (President Ramnath Kovind in Ayodhya) भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने रामायण कॉन्क्लेव के उदघाटन के मौके पर कहा की भगवान श्री राम किसी एक नहीं है बल्कि राम हम सबके है। अपने भाषण के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कई बार रामायण की चौपाइयों का भी उल्लेख किया।

 

resident Ramnath Kovind in Ayodhya

अयोध्या में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का दिल को छु लेने वाला भाषण!

President Ramnath Kovind inaugurated Ramayana Conclave at Ayodhya: आज अयोध्या में सुबह से ही तैयारियां जोरो पर थी। और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की शानदार स्पीच ने सबका मन मोह लिया और जनता भक्ति भाव में लीन होकर उनके हर एक शब्द को सुनती रही। तो आइये जानते है आखिर राष्ट्रपति जी ने भगवान राम के बारे में क्या कहा ? ये है राष्ट्रपति जी के भाषण के महत्वपूर्ण बिंदु!

गांधीजी ने आदर्श भारत की अपनी परिकल्पना को रामराज्य का नाम दिया है। बापू की जीवन-चर्या में राम-नाम का बहुत महत्व था।

सार्वजनिक जीवन में प्रभु राम के आदर्शों को महात्मा गांधी ने आत्मसात किया था। वस्तुतः रामायण में वर्णित प्रभु राम का मर्यादा-पुरुषोत्तम रूप प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श का स्रोत है।

प्रभु राम द्वारा ऐसे समावेशी समाज की रचना, सामाजिक समरसता व एकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो हम सबके लिए आज भी अनुकरणीय है।

अपने वनवास के दौरान प्रभु राम ने युद्ध करने के लिए अयोध्या और मिथिला से सेना नहीं मंगवाई। उन्होंने कोल-भील-वानर आदि को एकत्रित कर अपनी सेना का निर्माण किया। अपने अभियान में जटायु से लेकर गिलहरी तक को शामिल किया। आदिवासियों के साथ प्रेम और मैत्री को प्रगाढ़ बनाया।

निषादराज के साथ प्रभु राम का गले मिलना और उन दोनों का मार्मिक संवाद, समरसता, सौहार्द की निसानी है। रामायण में राम-भक्त शबरी का प्रसंग सामाजिक समरसता का अनुपम संदेश देता है। महान तपस्वी मतंग मुनि की शिष्या शबरी और प्रभु राम का मिलन, एक भेद-भाव-मुक्त समाज व प्रेम की दिव्यता का अद्भुत उदाहरण है।

मैं तो समझता हूं कि मेरे परिवार में जब मेरे माता-पिता और बुजुर्गों ने मेरा नाम-करण किया होगा तब उन सब में भी संभवतः रामकथा और प्रभु राम के प्रति वही श्रद्धा और अनुराग का भाव रहा होगा जो सामान्य लोकमानस में देखा जाता है।

रामकथा का साहित्यिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव मानवता के बहुत बड़े भाग में देखा जाता है। भारत ही नहीं विश्व की अनेक लोक-भाषाओं और लोक-संस्कृतियों में रामायण और राम के प्रति सम्मान और प्रेम झलकता है।

विश्व के अनेक देशों में रामकथा की प्रस्तुति की जाती है। इन्डोनेशिया के बाली द्वीप की रामलीला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मालदीव, मारिशस, त्रिनिदाद व टोबेगो, नेपाल, कंबोडिया और सूरीनाम सहित अनेक देशों में प्रवासी भारतीयों ने रामकथा व रामलीला को जीवंत बनाए रखा है।

रामकथा की लोकप्रियता भारत में ही नहीं बल्कि विश्वव्यापी है। उत्तर भारत में गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित-मानस, भारत के पूर्वी हिस्से में कृत्तिवास रामायण, दक्षिण में कंबन रामायण जैसे रामकथा के अनेक पठनीय रूप प्रचलित हैं।

रामायण में राम निवास करते हैं। इस अमर आदिकाव्य रामायण के विषय में स्वयं महर्षि वाल्मीकि ने कहा है:
यावत् स्था-स्यन्ति गिरय: सरित-श्च महीतले
तावद् रामायण-कथा लोकेषु प्र-चरिष्यति।
अर्थात
जब तक पृथ्वी पर पर्वत और नदियां विद्यमान रहेंगे, तब तक रामकथा लोकप्रिय बनी रहेगी।

रामचरित-मानस की पंक्तियां लोगों में आशा जगाती हैं, प्रेरणा का संचार करती हैं और ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं। आलस्य एवं भाग्यवाद का त्याग करके कर्मठ होने की प्रेरणा अनेक चौपाइयों से मिलती है:
कादर मन कहुँ एक अधारा।
दैव दैव आलसी पुकारा।।
यह दैव तो कायर के मन का एक आधार है यानि तसल्ली देने का तरीका है। आलसी लोग ही भाग्य की दुहाई दिया करते हैं। ऐसी सूक्तियों के सहारे लोग जीवन में अपना रास्ता बनाते चलते हैं।

ऐसे अभाव-मुक्त आदर्श समाज में अपराध की मानसिकता तक विलुप्त हो चुकी थी। दंड विधान की आवश्यकता ही नहीं थी। किसी भी प्रकार का भेद-भाव था ही नहीं:
दंड जतिन्ह कर भेद जहँ, नर्तक नृत्य समाज।
जीतहु मनहि सुनिअ अस, रामचन्द्र के राज॥

रामचरितमानस में एक आदर्श व्यक्ति और एक आदर्श समाज दोनों का वर्णन मिलता है। रामराज्य में आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ आचरण की श्रेष्ठता का बहुत ही सहज और हृदयग्राही विवरण मिलता है:
नहिं दरिद्र कोउ, दुखी न दीना।
नहिं कोउ अबुध, न लच्छन हीना।।

संतान का माता-पिता के साथ, भाई का भाई के साथ, पति का पत्नी के साथ, गुरु का शिष्य के साथ, मित्र का मित्र के साथ, शासक का जनता के साथ और मानव का प्रकृति व पशु-पक्षियों के साथ कैसा आचरण होना चाहिए, इन सभी आयामों पर, रामायण में उपलब्ध आचार संहिता, हमें सही मार्ग पर ले जाती है। रामायण में दर्शन के साथ-साथ आदर्श आचार संहिता भी उपलब्ध है जो जीवन के प्रत्येक पक्ष में हमारा मार्गदर्शन करती है।

अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है, ‘जिसके साथ युद्ध करना असंभव हो’। रघु, दिलीप, अज, दशरथ और राम जैसे रघुवंशी राजाओं के पराक्रम व शक्ति के कारण उनकी राजधानी को अपराजेय माना जाता था। इसलिए इस नगरी का ‘अयोध्या’ नाम सर्वदा सार्थक रहेगा। राम के बिना अयोध्या, अयोध्या है ही नहीं। अयोध्या तो वही है, जहां राम हैं। इस नगरी में प्रभु राम सदा के लिए विराजमान हैं। इसलिए यह स्थान सही अर्थों में अयोध्या है।

रामायण ऐसा विलक्षण ग्रंथ है जो रामकथा के माध्यम से विश्व समुदाय के समक्ष मानव जीवन के उच्च आदर्शों और मर्यादाओं को प्रस्तुत करता है। मुझे विश्वास है कि रामायण के प्रचार-प्रसार हेतु उत्तर प्रदेश सरकार का यह प्रयास भारतीय संस्कृति तथा पूरी मानवता के हित में महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि रामायण और महाभारत, इन दोनों ग्रन्थों में, भारत की आत्मा के दर्शन होते हैं। यह कहा जा सकता है कि भारतीय जीवन मूल्यों के आदर्श, उनकी कहानियां और उपदेश, रामायण में समाहित हैं।

रामकथा के महत्व के विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है:
रामकथा सुंदर करतारी,
संसय बिहग उड़ावनि-हारी।
अर्थात
राम की कथा हाथ की वह मधुर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उड़ा देती है।

 

VIDEO: President Ramnath Kovind in Ayodhya

 

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