आज महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti) है। भारतीय जनता पार्टी(BJP) Netaji Subhash Chandra Bose की जयंती को पराक्रम दिवश(Parakram Diwas) के रूप में मना रही है। आपने नेताजी बारे में कई किताबें पढ़ी होंगी और उनके कई किस्से भी सुने होंगे इतिहास के पन्नों को पलट कर उन्हें करीब से जानने की कोशिश की होगी।
लेकिन आज हम आपको नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में कुछ सही और अनसुने किस्से बताने वाले है जिसे बताने में हमारे देश के डिजाइनर इतिहासकारों और तथाकथित बुद्धीजीवियों ने हमेशा ही कोताही की है क्योकि यदि ये बाते सबके सामने आएँगी तो नेताजी की लोकप्रियता और बढ़ जाएगी जो कुछ वामपंथी इतिहासकारो और राजनेताओं को रास नहीं आता।
आज हम Parakram Diwas पर एक ऐसी सत्य घटना आपने लिए लाए हैं जो अपने आपमें अभूतपूर्व है और ये पूरी तरह हमारे आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस को समर्पित है।
कहानी 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की
पहले बात करते है वर्ष 1938 की जब नेताजी सुबाष चंद्र बोस को सर्वसम्मति से कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था। उस समय कांग्रेस ही पूरे स्वतंत्रता आंदोलन का चेहरा हुआ करती थी इसमें महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरु, और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद अदि प्रमुख नेताओ में से एक थे।
अध्यक्ष रहते हुए अपने कार्यकाल के एक साल के में ही सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस को मजबूत करके एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया। नेताजी का मानना था की दूसरे विश्व युद्ध का फायदा उठा कर हमें आजादी हासिल कर लेना चाहिए लेकिन उनके इस प्रस्ताव से कांग्रेस के तमाम नेता सहमत नहीं थे। आश्चर्य की बात तो यह है कि महात्मा गांधी जैसे बड़े नेता ने भी बोस के विचारों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि बोस के विचार हिंसक हैं।
नेताजी की बढाती लोकप्रियता से कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस के अनेको शत्रु बन गए थे जो उन्हें किसी भी कीमत पर कांग्रेस में नहीं देखना चाहते थे। इसीलिए जब 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने फिर से कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए अपनी दावेदारी पेश की तो उनके खिलाफ महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने मिलकर पट्टाभि सीतारमय्या को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।
लेकिन यहाँ भी गाँधी-नेहरू का ये गठबंधन चल नहीं पाया और महात्मा गांधी के विरोध के बावजूद Subhash Chandra Bose ये चुनाव आसानी से जीत गए और पट्टाभि सीतारमय्या की हार हुई। कहा जाता है की ये हार सीतारमय्या की नहीं बल्कि महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू की संयुक्त हार थी। कांग्रेस में नेताजी का कद इतना बढ़ गया था की सभी उनके सामने कांग्रेस के तमाम नेता बौने साबित हो रहे थे और सही कहे तो यहीं से कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस के महत्व को कम करने के लिए राजनीति शुरू हो गई जिसमें एक तरफ महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू थे वहीं दूसरी तरफ बोस अकेले खड़े थे।
नेताजी को जो सम्मान मिलना चाहिए था वो कांग्रेस ने नहीं दिया!
नेताजी के विचारों को कांग्रेस ने कभी सम्मान नहीं दिया। एक ज्वलंत सवाल हमेसा उठता रहा है की जब आजादी से पहले 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में नेताजी ने भारतीय सरकार की स्थापना कर ली थी तो कांग्रेस ने उसे नकार क्यों और उसे मान्यता क्यों नहीं दी?
आपको जान कर हैरानी होगी की उस समय दुनिया के 11 देशों ने नेताजी सुबाष चंद्र बोस की इस भारतीय सरकार को मान्यता दी थी। नेताजी की भारतीय सरकार को मान्यता देने वाले देशो में जापान, इटली, जर्मनी, थाईलैंड, चीन , म्यानमार बर्मा और फिलिपींस प्रमुख थे.
क्या है Parakram Diwas?
महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवश(Parakram Diwas) के रूप में मनाया जाता है। नेताजी की इस 125वीं जयंती को BJP पराक्रम दिवश के रूप में मना रही है। नेताजी के स्वाभाव और बिचार के अनुसार पराक्रम दिवश नाम बिलकुल सही है और उसे हर भारतीय को धूम धाम से मानना चाहिए साथ ही नेताजी के बिचारो और उनके द्वारा आजादी में दिए गए अविश्मरणीय योगदानो को हमेशा याद रखना चाहिए।
Parakram Diwas का मनाना तभी सफल होगा जब हमारे दिलो में नेताजी सुबास चंद्र बोस के विचार जिन्दा रहेंगे और हम उन्ही की तरह निःस्वार्थ भाव से तन मन धन द्वारा देश सेवा के लिए तत्पर रहेंगे।