छठ पूजा व्रत कथा: भारत में छठ की शुरुआत सबसे पहले बिहार, झारखंड और यूपी में हुई थी। लेकिन समय के साथ साथ अब ये त्यौहार भारत सहित पूरे विश्व में में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को महाछठ का पर्व मनाया जाता है। भारत में इस साल छठ पूजा 9 नवंबर से 11 नवंबर तक मनाई जाएगी। इस दिन श्रद्धालु श्रद्धा के साथ Chhath Puja Vrat Katha को श्रवण करते है।
छठ पूजा हिन्दू धर्म का एक बड़ा और महान पर्व होता है। इस दिन छठी मईया और भगवान सूर्य की पूजा अर्चना की जाती हैं। छठ पूजा का पर्व संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा और सुखमय जीवन के लिए स्त्रियां पूरी श्रद्धा के साथ मानती है। आज हम आपको बताएँगे की आखिर छठ पूजा की शुरुआत क्यों हुई और इसकी पौराणिक मान्यताये क्या है। साथ ही जानेंगे पूरी Chhath Puja Vrat Katha और पूजा बिधि।
छठ पूजा व्रत कथा
हिन्दू ग्रंथो और पौराणिक कथाओं के अनुसार हजारो साल पहले प्रियव्रत नाम का एक राजा था। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। राजा और रानी दोनों की कोई संतान नहीं थी। राजा और रानी दोनों इस बात से दुखी रहते थे। दोनों संतान प्राप्ति के लिए दर-दर भटक रहे थे। बाद में वे महर्षि कश्यप की सरण में गए और महर्षि कश्यप के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। राजा का यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुईं।
रानी ने नव महीने बाद एक लडके को जन्म दिया। लेकिन रानी को मरा हुआ बेटा पैदा हुआ। यह बात सुनकर राजा और रानी दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी। राजा प्रियव्रत तो इतने दुखी थे कि उन्होंने आत्महत्या करने का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही वो खुद को मारने के लिए आगे बढे तभी छठी मइया प्रकट हुईं और राजा को भली भातिं समझाया।
छठ पूजा की व्रत कथा कहती है की छठी मइया ने राजा से कहा कि जो भी व्यक्ति मेरी सच्चे मन से पूजा करता है मैं उन्हें पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। यदि तुम भी मेरी पूजा करोगे तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा प्रियव्रत ने छठी मइया की बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूजा की और छठ पूजा की व्रत कथा सुनी। माता षष्टी ने राजा और रानी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसके बाद राजा के घर में एक स्वस्थ्य सुंदर बालक ने जन्म लिया। तभी से छठ का पर्व पूरी श्रद्धा के साथ लोग मनाने लगें।
Chhath Puja Vrat Katha: छठ पूजा बिधि
- छठ पर्व के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है।
- संकल्प लेते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण किया जाता है:-
ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
- पूरे दिन निराहार और निर्जला व्रत रखा जाता है।
- शाम के समय नदी या तालाब में जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।
- अर्घ्य देने के लिए बांस की तीन बड़ी टोकरी या बांस या पीतल के तीन सूप लें।
- बांस की टोकरी में चावल, दीपक, लाल सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी रखें।
- साथ में थाली, दूध और गिलास ले लें।
- फलों में नाशपाती, शहद, पान, बड़ा नींबू, सुपारी, कैराव, कपूर, मिठाई और चंदन रखें।
- खाने में ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, पूरी, चावल से बने लड्डू भी रखें।
- सभी सामग्रियां टोकरी में सजा लें।
- सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में एक दीपक भी जला लें।
- प्रसाद सुप में लेकर नदी में उतर कर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- अर्घ्य देते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:-
ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥
छठ पूजा सामग्री (Chhath Puja Samagri)
- बांस की तीन बड़ी टोकरी
- चावल
- दीपक
- लाल सिंदूर
- गन्ना
- हल्दी
- सुथनी
- सब्जी
- शकरकंदी
- थाली
- दूध
- गिलास
- नाशपाती
- शहद
- पान
- बड़ा नींबू
- सुपारी
- कैराव
- कपूर
- मिठाई
- चंदन
- ठेकुआ
- मालपुआ
- खीर
- सूजी का हलवा
- पूरी
- चावल से बने लड्डू
छठ पूजा व्रत कथा का महत्त्व
छठ पूजा व्रत कथा का बड़ा महत्त्व है। क्योकि छठी मइया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि जिन छठ पर्व संतान के लिए मनाया जाता है। आज कल तो सभी छठ का त्यौहार मानते है लेकिन पहले छठ पर्व वही लोग मनाते थे जिन्हें संतान का प्राप्ति नही हुई हो। बाकि सभी लोग अपने बच्चों की सुख-शांति, बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और उसकी दीर्घायु के लिए छठ मनाते हैं।