चंद्रमौली चोपड़ा जिनका नाम उनकी दादी ने बदलकर रामानंद कर दिया था का जन्म 29 दिसंबर 1917 को लाहौर के पास एक छोटे से हुआ था, गरीब परिवार में जन्मे इस बच्चे की रूचि पढ़ने में ज्यादा थी जिसके लिए वे दिन में चपरासी, ट्रक क्लीनर और साबुन बेचने का काम करते और रात में अपनी डिग्री के लिए पढ़ाई करते थे.
अपनी पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने लाहौर में डेली मिलाप के न्यूज एडिटर के पद पर काम किया, पत्रकारिता के करियर के दौरान पोएट्री भी लिखा करते थे, लेकिन उनका मन तो फिल्म और सीरियल में अपना करीयर बनाने का था |
रामायण की एक चौपाई है ” होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा ” इसका अर्थ है की राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। तो रामानंद सागर की तो किस्मत में तो भगवान् ने रामायण का निर्माण लिख रखा था
रामानंद सागर के लिए रामायण निर्माण का सफर आसान नहीं था | यहाँ तक पहुंचने से पहले उन्होंने फिल्म जगत में हर तरह छोटे मोटे काम किये | भारत विभाजन के बाद वे मुंबई आ गए और दो साल संघर्ष के बाद उन्हें राज कपूर के साथ काम करने का मौका मिला और उन्होंने साल 1949 में राज कपूर की फिल्म बरसात के लिए डायलॉग्स और स्क्रीनप्ले को लिखा था.
रामानंद सागर ने साल १९५० में सागर आर्ट कॉरपोरेशन नाम की अपनी प्रोडक्शन कंपनी की नींव राखी | इस कंपनी के नाम कई चर्चित फिल्में हैं जिनमें पैगाम, आंखे, ललकार, जिंदगी और आरजू जैसी महत्वपूर्ण फिल्में शामिल हैं.
रामानंद सागर को रामायण ने दिलाई जबरदस्त सफलता
वो दौर 80 के दशक का था जब देश में दूरदर्शन एंटरटेनमेंट का साधन बन चूका था |रामानंद को एहसास हो गया था कि आने वाला समय अब टीवी का है और यही कारण है कि उन्होंने रामायण जैसे शोज का निर्माण किया. ये वो दौर था जब रामायण इतना पॉपुलर हो चूका था की जब इसका प्रसारण होता था तब सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था और लोग अपने टीवी से चिपक कर बैठ जाते थे, आस्था का आलम यह है की इस सीरियल के कलाकारों को कई लोग आज तक भगवान समझतें हैं . रामानंद ने रामायण के सहारे काफी लोकप्रियता हासिल की और उन्हें कई राष्ट्रीय. और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया |
लगभग ८७ साल की उम्र में उन्होंने 12 दिसंबर 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.